महाभारत का युद्ध क्यों हुआ?
एक कारण ये भी है की धृतराष्ट्र नेत्रहिन थे इसलिए. धृतराष्ट्र को किसीने आँखों का दान नहीं किया था, अगर धृतराष्ट्र देख पाते होते तो हस्तिनापुर के महाराजा पाण्डु नहीं होते थे, धृतराष्ट्र होते थे.
उनकी महाराजा बनने की मनोकामना मन में रह गई थी.
धृतराष्ट्र अंधे होने के कारन शकुनि को बहोत तकलीफ हुई थी, एक अंधे के साथ नेत्रहीन के साथ मेरी बहन का विवाह किया जा रहा है, इस सोच से इस विवाह के कारण शकुनि को गुस्सा आया और उसी समय हस्तिनापुर को बर्बाद करने का सडयंत्र रच दिया.
शकुनि अपनी बहन का , गांधार देश का, अपना अपमान सहन नहीं कर पाया इसलिए शकुनि अपनी बहन के साथ हस्तिनापुर रहना लगा और हस्तिनापुर को अंदर से खोखला करने लगा.
धृतराष्ट्र को आँखे होती तो ऐसा न होता. शकुनि अपने भांजे दुर्योधन को ( कौरवो ) को बचपन से ही मन में विचारों में जहर भर रहा था. धृतराष्ट्र को आँखे होती तो ऐसा न होता. दुर्योधन ने बार बार पांडवो को मरने की कोशिश की उनको लाक्षागृह में जलाने की कोशिश की फिर भी धृतराष्ट्र चुप बैठे रहे. धृतराष्ट्र को किसीने आंखों का दान किया होता तो महाभारत का भीषण यह युद्ध ही न होता.
दुर्योधन अधर्म करता रहता था परन्तु धृतराष्ट्र आँखे न होने के कारण दुर्योधन का अधर्म देख नहीं पाते थे, धृतराष्ट्र को आँखे होती तो वो देख पाते फिर ऐसा न होता.
शकुनि और दुर्योधन की चाल में पांडवो को जुवा खेलने बुलाना और जुवे में सबकुछ पांडवो का हड़प कर लेना, दुशासन द्वारा द्रौपदी का वस्त्रहरण करना और पांडवों को वनवास बगेरे ये घटना न होती. अगर धुतराष्ट्र को आँखे होती.
कौरवो और पांडवो के बिच युद्ध की तैयारी हो चुकी थी. धृतराष्ट्र को युद्ध देखने की इच्छा थी परन्तु आँखे न होने के कारण आँखों देखा हाल नहीं देख पाया। इसलिए संजय को अपने पास बिठाया और युद्ध का विवरण संजय से सुना। संजय को दिव्यदृष्टि का वरदान मिला था इसलिए वो उस पावर से आखो देखा हाल देखकर महाराज धृतराष्ट्र को बता पा रहा था. धृतराष्ट्र को किसीने आँखों का दान किया होता तो महाभारत का भीषण युद्ध ही न होता.
धृतराष्ट्र को द्रष्टि न होने कारन सुंदर सृष्टी नहीं देख पाया, उस ज़माने अगर किसीने आँखों का दान दिया होता तो शायद बात कुछ और होती.
इस बदलते ज़माने में ये सुविधा है इसलिए दानवीर लोग मरने से कुछ समय पहले अपने अवयव का अपने आँखों का दान देने लगे है.
इस दुनिया में हर कोई दानवीर बन सकता है, दानवीर बनने के लिए धन की जरुरत नहीं है. दान करने के लिए आपका तन ही अनमोल है , आपने जीते जी भले ही कुछ दान न किया हो परन्तु मरने से पहले अवयव का दान तो कर ही सकते है.
महाभारत के योद्धा कर्ण को हम लोग दानवीर के नाम से जानते हैं इसी तरह आपको भी लोग दानवीर के नाम से जानेंगे, आप भी दानवीर कहलायेंगे.
आओ सब मिलकर एक प्रण ले, दुनिया को अवयव दान से अवगत कराये,दुनिया को दानवीर बनाये. आओ मिलकर कुछ काम करेअवयव दान दान करे-कुछ काम महान करे.
– रवि प्रजापति